Thursday, August 23, 2018

विचारों का 7 चक्रों पर प्रभाव

विचारों का 7 चक्रों पर प्रभाव - मनुष्य में  यदि सबसे प्रभावी कोई तंत्र है  तो वह है विचार तंत्र। अनेक लोगों द्वारा लिए गए कई अनुभव से यही बात सामने आती है की अधिकांश लोग सतत विचारों में चलते रहतें हैं।  दिनचर्या के क्रियाकर्मों के साथ विचार भी चलते रहतें हैं।  ज्यादातर विचार क्रियाकर्मों से भिन्न होते हैं अर्थात वर्तमान में किए जाने वाले कर्म और विचारों के विषय में भिन्नता हो जाती है।  इस अनुसार हम विचारों को  3 श्रेणी में बांटते हैं। 
1. कर्मसापेक्ष उत्तम श्रेणी  - इसे कर्मसापेक्ष विचार  भी कहेंगे  . यह सबसे उत्तम प्रकृति का विचार है।  यह विचार वर्तमान कर्म के साथ चलता है, अर्थात किए जा रहे कर्म के समय कर्म पर ही सारा विचार एकाग्रचित्त हो जाता है। 
2.कर्मनिर्पेक्ष  मध्यम श्रेणी - इस प्रकार के विचार की प्रकृति कर्म सापेक्ष नहीं होती किन्तु सकारात्मक होती है ।  अर्थात कर्म के समय विचार अन्यत्र है किन्तु सकारात्मक है। 
3.कर्मनिर्पेक्ष  निम्न श्रेणी - इस प्रकार का भी विचार कर्म के सापेक्ष नहीं होता किन्तु यह नकारात्मक होता है।  अर्थात कर्म के समय विचार अन्यत्र है किन्तु खल,चिंतित अथवा अवसाद की स्थिति में है। यही विचार चक्रों के असंतुलन का मुख्य कारक है।  

कैसे होते हैं 7 चक्र प्रभावित ?-   विभिन्न प्रकार के भाव विभिन्न  चक्रों को प्रभावित करते हैं। अलग -अलग  विचारों के अनुरूप भावों का अलग -अलग चक्रों से सम्बन्ध होता है।सकारात्मक विचार चक्रों पर सकारात्मक प्रभाव डालते हैं और नकारात्मक विचार नकारात्मक प्रभाव।  किसी एक विषय पर विचार की लम्बे समय तक निरंतरता सकारात्मकता और नकारात्मकता के अनुसार चक्र को सक्रिय और निष्क्रिय भीं करते हैं, जिसे हम निम्नलिखित रूप से समझेंगे-  यदि कोई व्यक्ति धैर्य और स्थिर न रहने के कारण निरंतर दुखी या अवसाद में है तो निश्चित ही  मूलाधार चक्र  असंतुलित हो जायेगा, स्वास्थ्य के बारे में चिंतन भी मूलाधार को प्रभावित करेगा। किसी के भीतर धन संचय न हो पाने के कारण  चिंता अथवा अवसदादात्मक विचार स्वाधिष्ठान को असंतुलित करेंगे। सही निर्णय न ले पाने के कारण चिंता मणिपुर को बाधित करेंगे।  संबंधों अथवा प्रेम प्रसंग में सफलता की चिंता अनाहत को असंतुलित करेंगे।  भीतर की घुटन एवं समृद्धि रुक जाने पर विशुद्धि चक्र का संतुलन बिगड़ेगा।  बहरी अथवा भीतरी नियंत्रण न स्थापित कर पाना अथवा नियंत्रित न कर पाने के कारण चिंता आज्ञा को दुष्प्रभावित करेगी।  
                       उदाहरण के तौर पर 1 दिनपहले एक व्यक्ति का अनुभव लिया।  व्यक्तिकुछ वर्ष पहले  थायरॉइड की समस्या से पीड़ित हो गया जो अभी संतुलित की दिशा में था ।  जन्म समय के चक्र स्टेटस को निकालने पर उसका विशुद्धि संतुलित था किन्तु वर्तमान में असंतुलित।  उससे मैंने प्रश्न किया की कुछ काल  पहले क्या आपको लम्बे समय तक किसी असफलता के कारन घुटन अथवा समृद्धि रुक जाने के कारण अवसाद का शिकार होना पड़ा।  उसने स्वीकार किया कि लम्बे समय तक घुटन एवं असमृद्धि के कारण अवसाद रहा।  ये दोनों विषय विशुद्धि चक्र से सम्बंधित थे,सम्बंधित नकारात्मक विचारों ने विशुद्धि चक्र पर सीधा प्रभाव डाला।  उसने  बताया कि उसे,कुछ दिन  ध्यान करने के बाद वैचारिक परिवर्तन हुआ।  समृद्धि के प्रति वैचारिक सोच परिवर्तित हो गयी और घुटन भी समाप्त हो गयी उसके बाद से थायरॉइड में भी आराम मिलने लगा। 

आप भी कर सकतें हैं विचारों से चक्रों को सन्तुलित और स्वासमाधान - यदि आपकी समझ में यह विचारों का विज्ञान आ जाये तो जीवन के प्रत्येक विषय पर विचार को सकारात्मक करिये। क्योकि प्रत्येक विचार विभिन्न चक्रों से सम्बंधित है।  यदि विचार सकारात्मक नहीं हो पा रहे हैं तब ध्यान योगव्यायाम, प्राणायाम और ध्यान को नियमित अपनाइये।  योग से ज्यादा मददगार कुछ नहीं ,आपके लिए।  अभी हम पहले स्तर में विचार को मध्यम श्रेणी में ही ले जाने की बात करेंगे  अर्थात  कर्म के समय अन्यत्र विचार किन्तु सकारात्मक दिशा की तरफ।  आपका प्रयास और मध्यम श्रेणी के स्तर पर पहुंच जाने पर आप निरंतर रहिए अपने अभ्यास में विचार स्वतः धीरे धीरे उत्तम श्रेणी तक पहुँचने लगेंगे अर्थात कर्म से सापेक्ष। 
ध्यान योग्य बातें - चक्रों को संतुलित -असंतुलित करने में सिर्फ नकारात्मक विचार ही नहीं जिम्मेदार होते हैं बल्कि कर्म भी भूमिका  निभाते  हैं।  यदि आपने   किसी को पीड़ा पहुँचाई है और इस अपराध से आप प्रसन्न भी है तो विषय से सम्बंधित चक्र समृद्ध तो होगा किन्तु चक्र की प्रकृति  नकारात्मक हो जाएगी जो बादमे आपको भी पीड़ित करेंगे किन्तु यदि आप किसी को पीड़ा देने के बाद लज्जित हैं तो लज्जित होने के प्रति पनपने वाला अवसाद विषय से सम्बंधित चक्र को असंतुलित करेगा।  परपीड़ा सम्बन्धी कर्मों के कारण यदि चक्र असंतुलित हुए तो उसका उपचार ध्यान के स्थान पर सर्वप्रथम  कर्मों से ही किया जा सकेगा।  जिसकी मुख्य विधि पश्चाताप अथवा सामने से प्रकट रूप में क्षमा - याचना है।  स्वयं के अपराध की स्पष्ट प्रकट रूप से क्षमा याचना की संतुष्टि आपके भीतर के विचारों को परिवर्तित करेगी जो चक्रों के संतुलन होने में सहायक होगी और यह संतुलन आपको भीतर एवं बाहर से समृद्ध करेगा।  _________लेख- मानस राजऋषि 

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