Monday, August 6, 2018

If You want God to be with you, then

मनुष्य स्वयं एक अनसुलझी पहेली है।  ये मेरा संस्कार था मेरी माँ को उस समय पूजा पाठ में इतना यकींन था किन्तु उसने हमें जो कहानियां सुनाई वह एक ऐसे मार्ग की थी जिस मार्ग में ईश्वर आपके साथ स्वयं यात्रा करते रहतें हैं।  वह मार्ग था सत्य के साथ चलने का , और सत्य के प्रति न डरने का।  मैं जब- जब भक्त बना तब तक स्वयं को खो दिया मै  स्वयं को खोना नहीं चाहता था।  इसलिए एक दिन पूजा-पाठ जैसी आस्थाओं से स्वयं को मुक्त कर लिया।  मैंने हर निर्जीव-सजीव वास्तु में एक ऐसे परमात्मा का वास मानने लगा जिसे मैं  अव्यक्त मानता  था। मेरी मान्यता लोगों  की  समझ में नास्तिकता थी।  मेरी मान्यता मुझे भीतर को जाग्रत करने में मुझे मदद  करती गयी।  तब से आज तब जीवन में अनेको रोड़े आये , विरोधी भी आये किन्तु वो मुझे नीचे नहीं गिरा सके उसकी जगह  मै  और आगे बढ़ता गया।  फिर भी मुझे दुःख है की - लोग किसी न किसी संप्रदायय में जन्म लेते हैं।  सम्प्रदायों में अलग अलग पंथ और उनकी अलग अलग ईश्वरीय धारणाएं।  मैने लगभग सभी सम्प्रदायों के प्रत्येक पंथ की ईश्वरीय मान्यताओं को देखा देख।  किसी भी पंथ में ऐसी मान्यता न मिली जिसमें असत्य ,बेईमानी ,अहिंसा की कोई प्रेरणा हो।

  अभी पिछले वर्ष  जैन के एक विशेष समुदाय से मेरा सामना हुआ।  उस समुदाय की ईश्वरीय मान्यता मेरे स्वाभाव के अनुकूल लगी।  सिर्फ सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलो , मूर्तिवाद और दर्शन की कोई भ्रान्ति नहीं।  उस समुदाय ने तो पूरा विश्वविद्यालय ही बना रखा है।  विश्व  में शांति स्थापित करने का बेडा ही उठा लिया।  मैं उनके आचार्यों की शिक्षाओं से इतना प्रभावित हुआ की वहां का योग विद्यार्थी ही बन गया।  उस समय अहमदाबाद में मेरी प्रसिद्धि एक कुशल विचारक, योगगुरु और प्राकृतिक चिकित्सक के रूप में विद्यमान हो चुकी था।  विश्वविद्यालय के दलालों ने पैसे  एठने के  लिए रोज नए नए कोर्स,फॉर्म और उपक्रम ला रहे थे और अहमदाबाद  के मुख्य दलाल को रोज मेरे थेरपी सेंटर में मुफ्त की मसाज चाहिए थी। जिसे मै  परेशान हो हो रहा था। एक दिन बसंत  नाम के उस दलाल ने थेरपी सेंटर में मुझसे लड़की द्वारा मसाज की मांग कर दी।  मैंने पूर्णतः उनको मना कर दिया और आगे उन्हें न आने का निवेदन किया।   मैंने इसका विरोध किया तो उसने उसने समुदाय के एक पुरुष और दो शिक्षिकाओं को अपने साथ मिला लिया और नए मुद्दे को कारण बना कर मुझे प्रैक्टिकल परीक्षा से वंचित कर दिया, और अन्य विद्यार्थियों में भी मुझे गलत प्रचारित कर क्षवि धूमल करने का प्रयास किया । उन लोगों ने मेरी क्षवि को पूरी तरह सर धूमिल करने का प्रयास किया किन्तु मैं नहीं घबराया।  मुझे विश्वास  था की मेरे भीतर का परमात्मा मुझे कभी निचे नहीं गिरा सकता।  मुझे प्रैक्टिकल से वंचित किए ३ दिन भी नहीं हुए थे की गुजरात सरकार की तरफ से मुझे योग दिवस पर विश्व रिकॉर्ड बनाने का प्रपोजल आया।  ६ दिन बाकी थे २१ जून को।  मैंने टीम बनाया और योग दिवस की तैयारी में लग गया।  मुझे उस समय हर क्षण लगा की जैसे वह ईश्वर जिसकों उस जैन समुदाय के लोग  मानते हैं वह भी उनकी असत्य प्रवृत्ति के कारण रूठकर , उन्हें छोड़ कर मेरे साथ हो लिया।

     मुझे विश्वयोग दिवस की तयारी के हर एक क्षण महसूस हुआ की  परमात्मा सदैव मेरे नजदीक है और मुझे शक्ति दे रहा है।  परमात्मा ने मुझे जीत दिला दी।  मेरी क्षवि उन  दलालों द्वारा नीची तो नहीं की जा सकी किन्तु  और ऊपर अवश्य बढ़ गयी।
मेरी इस कहानी का प्रयोजन किसी के अपराध को सामने लाना नहीं बल्कि यह है की जब आप वास्तव में ईश्वरीय नजदीकी चाहते हो तो।  आपको झूठ बेईमानी से मुक्त होना पड़ेगा।  सिर्फ स्वयं के समुदाय की सेवा की भावना से निकलकर हर एक जीव की सेवा पर आस्था को कायम करना होगा।  ईश्वर अवयक्त है।  आपको साक्षात् न दिखेगा।  किन्तु मिलेगा अवश्य।  जो आपको भी उस आस्था की तरह कायम रखेगा।  

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