सब खेल है , भीतर की सारी ऊर्जाओं का -
शरीर प्राणवान है तबतक भीतर अनंत ऊर्जाओं का प्रवाह है। इन ऊर्जाओं में कुछ ऊर्जाएं सकारात्मक प्रभाव देतीं हैं कुछ नकारात्मक और कुछ न्यूट्रल। हमारे भीतर के संस्कार , संगति ,विचार और व्यव्हार के गुणों के अनुरूप ये ऊर्जाएं पोषित होती रहतीं हैं। एवं फलने-फूलने बढ़ने कार्य करतीं हैं। जीवन के जितने विषय उतनी ऊर्जाएं हैं। हर विषय की अलग ऊर्जा होती है। जैसे स्वास्थ्य को समृद्ध करने वाली ऊर्जा अलग है तो सुख को बढ़ाने बवाली ऊर्जा अलग। उसी प्रकार जिस भाग्य,दुर्भाग्य को हम धर्मों में मानते हैं वास्तव में वह भी है , ऊर्जा के रूप में। धन संचय की भी ऊर्जा है तो कर्म की भी ऊर्जा है। हमारे भीतर के स्वरूप में भी सतत एक युद्ध चल रहा है- विषयों के प्रति नकारात्मक ऊर्जाओं का और सकारात्मक ऊर्जाएं का। यदि भीतर की नकारात्मक ऊर्जाएं सकरात्मक ऊर्जाओं ज्यादा ताकतवर होंगी तो वह आपको दुखी ही करने वाली हैं। सतत सुख का एक ही विकल्प है। ऊर्जाओं के खेल को सीखना , समझना और भीतर के इस युद्ध में विजयी होना।
नाड़ियाँ और व्यक्तित्व -
वैसे तो आयुर्वेद में 72 हजार नाड़ियों का वर्णन है किन्तु
14 नाड़ियाँ मुखी रूप से मनुष्य की ऊर्जओं को संचालित करतीं हैं ।
"सुषुम्नेडा पिंगला च गांधारी हस्तिजिह्विका.
कुहूः सरस्वती पूषा शंखिनी च पयस्विनी.
वारुण्यलम्बुषा चैव विश्वोदरी यशस्विनी.
एतासु त्रिस्रो मुख्याः स्युः पिंगलेडासुषुम्निकाः. --शिवसंहिता 2/14-15
इंगला,
पिंगला, सुषुम्ना, गांधारी, हस्तजिह्वा, कुहू, सरस्वती, पूषा, शंखिनी, पयस्विनी, वारुणी, अलम्बुषा, विश्वोदरी और यशस्विनी, इन चौदह नाड़ियों में
इंगला, पिगला और सुषुम्ना तीन
प्रधान हैं. इनमें भी सुषुम्ना सबसे मुख्य है.
इड़ा – यह शरीर
के बायीं तरफ होती है जिसे चन्द्र नाड़ी से भी संबोधित करतें हैं । चंद्र की ऊर्जा स्वभावतः
चंचल स्वभाव के मन को पोषित करती है । भीतर
की कल्पनाएँ ,चाहनाएँ आदि जब प्रबल रहें तो समझिए वे सिर्फ चंद्र
ऊर्जाओं के प्रभाव से ग्रसित हैं । इस विशेष ऊर्जा की खपत विशेष रूप से इंद्रियों पर
होती है ।
पिंगला – यह शरीर के दायीं तरफ होती है जिए सूर्य नाड़ी
से भी संबोधित करतें हैं । सूर्य ऊर्जा स्वभावतः भाव शक्ति और शरीर की शक्ति को पोषित
करती है। भीतर की भावनाएँ और स्वस्थ्य जब प्रबल रहे तो समझिए सूर्य ऊर्जा से ज्यादा
प्रभावित है । इस विशेष ऊर्जा की खफ़त विशेषकर शरीर के मुख्य ऑर्गन्स और 7 चक्रों के
होती है ।
सुसूम्णा – सूर्य और चन्द्र नाड़ियाँ आपस में जहां मिलतीं
हैं उस स्थान से प्रवाहित होने वाली नाड़ी तो इन सूर्य और चन्द्र नाड़ी को कवच की भांति
ढक कर चलती है , सुसूम्णा नाड़ी कहलाती है । यह प्रत्येक समय सक्रिय नहीं रहती । जब दायीं और बायीं नासिका से
चलने वाला स्वर बराबर होता है तब यह सक्रिय हो जाती है । यह जितने समय तक सक्रिय
रहती है उतने समय प्राण ऊर्जा समृद्ध करती है । अवसाद से ग्रसित लोगों मे यह कम समय
और कम अंतराल तक सक्रिय होती है । अवसाद की अंतिम अवस्था अर्थात जब किसी के भीतर अत्महत्या
जैसा पूर्ण भाव आ जाए तब यह बिलकुल निष्क्रिय अवस्था में जाती है । सकारात्मक विचार, प्राणायाम और ध्यान से इसे सक्रिय
रखा जा सकता है ।है.
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