ऊर्जावाद का सिद्धांत
ब्रह्माण्ड मे व्याप्त पदार्थों में
सबसे सूक्ष्म और अदृश्य जो पदार्थ है, वह है ऊर्जा । अध्यात्म जगत को प्रभावित
करने वाली ऊर्जाएँ बड़ी विचित्र और भिन्न -भिन्न गुणों वाली होती हैं । ऐसी ऊर्जाए जिन्हे
आज तक मेडिकल साइंस भी नही व्यक्त कर पाया वास्तव मे अव्यक्त हैं ।
अपने यहाँ ,आपने सुना देखा होगा । विशेष गुणों की तारीफ करने पर नजर का लग
जाना । कुछ लोग इसे बकवास मान सकतें हैं किन्तु पूरी तरह से मै नही । उदाहरण के
तौर पर- मै एक दिन योग की क्लास ले रहा था
। मेरा शरीर का लचीलापन असमान्य कहा जा सकता था । उस दिन मेरी क्लास में एक योग की
प्रोफेसर । प्रोफेसर होने के बावजूद उनका शरीर भारी था । मेरा लचिलापन उनके भीतर ईर्ष्या
उत्पन्न करने के लिए काफी था । उन्होने
ईर्ष्या को तारीफ के रूप में व्यक्त
कर दिया और मैंने उसे मद भाव से युक्त होकर स्वीकार लिया । बस अगले दिन से कमर
दर्द शुरू हो गया वह 1 माह तक रहा , फिर उसके बाद एक के बाद
ऐसी घटनाएँ ऐसी बनती गईं की मेरा नियमित व्यायाम मुझे बंद रखना पड़ा , जिसका परिणाम यह रहा की मेरा लचिलापन जाता रहा । मुझे इसका आभास हो रहा
था । मैंने भीतर काम करके उस नकारात्मक ऊर्जा को प्रयास के साथ निकाल दिया दूसरे
ही दिन से सुधार होने लगा । अभी बहुत ही सकारात्मक स्थिति पुनः प्राप्त हों गयी ।
उपरोक्त घटना नकारात्मक ऊर्जा के प्रभाव का एक उदाहरण हैं ।इसी प्रकार आपने भी कभी न कभी ऊर्जाओं के प्रभाव को अवश्य
अनुभव किया होगा । किसी अच्छे व्यक्ति का हाथ सर पर पड़ जाना समृद्धि को बढ़ाने की दिशा
में कार्य करने लगता है ।
ऊर्जाओं को पढ़ कर समझना आसान हो सकता है , किन्तु जब तक भीतर की साधना
न की जाए इन ऊर्जाओं को महसूस करना असंभव है । स्वयं के जितने विषय उतनी ऊर्जाएँ ।
प्राण ऊर्जा और शरीर को जीवंत रखने वाली जीवनी ऊर्जा इन सभी ऊर्जाओं मे सबसे
ज्यादा महत्वपूर्ण है । विभिन्न विषयों से संबन्धित ऊर्जाओं के आवेशात्मक रूप से दो भेद हैं ,-एक
सकारात्मक ऊर्जा दूसरी नकारात्मक ऊर्जा । किसी विषय से संबन्धित ऊर्जा किसी
व्यक्ति में एक ही आवेश की उपस्थित रह सकती है । सकारात्मक अथवा नकारात्मक ।
स्वयं के मुख्य अन्य महत्वपूर्ण
विषयों से संबन्धित विभिन्न सकारात्मक
ऊर्जाएँ – स्थिर मनऊर्जा, प्रेमऊर्जा,कर्मऊर्जा, संबंधऊर्जा, सुखकारक ऊर्जा,
ज्ञानऊर्जा, सौभाग्यऊर्जा, लाभऊर्जा ।
ठीक इसी प्रकार विषयों की विभिन्न नकारात्मक ऊर्जाएँ भी इस प्रकार हैं –
अस्थिर मन ऊर्जा, द्वंद ऊर्जा, अकर्मी ऊर्जा, शत्रु कारक ऊर्जा, दुख कारक ऊर्जा, अज्ञान ऊर्जा, दुर्भाग्य ऊर्जा, व्यय ऊर्जा ।
दुखी इंसान के दुख का प्रारब्ध भीतर प्रवेश करने वाली मात्र एक नकारात्मक
ऊर्जा ही होती है जो बाद मे अन्य सकारात्मक ऊर्जाओं को बाहर निकाल नकारात्मक
ऊर्जाओं को आमंत्रित करने का प्रयास करती है । ऊर्जाओं के प्रवेश के निम्नलिखित
माध्यम हो सकतें हैं ।
स्थान विशेष – स्थान विशेष सकारात्मक या नकारात्मक ऊर्जाओं से प्रभावित
होतीं हैं । जहाँ भ्रमण करने से ऊर्जा पहले तो आभामंडल के संपर्क में आकार साथ हो
लेती है फिर बाद में उसका प्रवेश भीतर हो जाता है ।
क्रिया विशेष – ऊर्जाओं को आमंत्रित करने हेतु क्रियाओं और
साधनाओं द्वारा भी ऊर्जा को प्रकट कर उसे भीतर सुरक्षित किया जाता है ।
परक्रिया विशेष – किसी अन्य व्यक्ति द्वारा ऊर्जाओं को
आमंत्रित कर अन्य व्यक्ति को प्रभावित करना ।
विचार विशेष – व्यक्ति का जैसा विचार स्तर होता है वैसा ही उसका व्यवहार होता है एवं वैसी ही
ऊर्जा उसके भीतर संरक्षित होने लगती है ।
संस्कारजन्य ऊर्जा – कुछ लोगों में परिवारजन्य अथवा पूर्वजन्मजन्य संस्कार के कारण प्राप्त
ऊर्जाओं का संरक्षण होता है ।
दुर्भाव जन्य विशेष
– उपरोक्त उदाहरण के अनुसार नजर लगना । मूलतः सभी
उद्वेग नजर के द्वारा नहीं उत्पन्न होते किन्तु इसका प्रभाव परव्यक्ति द्वारा ईर्ष्या
के भाव स्वरूप अभिव्यक्ति और दंभ रूप में उसकी स्वयं स्वीकरोक्ति द्वारा होता है ।
घटना विशेष – जीवन में सुख ,दुख,सफलता,असफलता आदि घटनाएँ भी भीतर के भाव को बदलकर सकारात्मक
और नकारात्मक ऊर्जाओं के निर्माण का कार्य करतीं हैं ।
उम्र विशेष – उम्र के अनुसार भी ऊर्जाओं के निर्माण और क्षय का समय आता है वे उसी भांति
प्रभाव उत्पन्न करतीं हैं ।
अव्यक्त ऊर्जाओं का खेल
कुछ मूढ़ लोग इन उर्जाओं को व्यक्त रूप मे जानने के लिए प्रयोग करतें हैं ।
ऊर्जाए अवक्त हैं और इन्हें अवक्त रूप में ही समझना पड़ेगा । उर्जाओं को समझने और
उनके द्वारा स्थिति परिवर्तित करने के अनेकों सिद्धांत हैं । जिनमें से कुछ निम्न
हैं –
चित्त वृत्ति निरोध – भीतर की ऊर्जाओं को आप
तब तक नहीं समझ सकते जब तक मन भटकाव की स्थिति में है । ऊर्जाओं को पहले समझना
होगा उसके लिए मन को भटकाव से मुक्त कर एक जगह टिकने का प्रयास करना होगा ।
परमार्थ – परमार्थ अर्थात दूसरों पर उपकार करना । हर
जीव के भीतर अलग अलग तरह की ऊर्जाएँ होती हैं । परमार्थ के कार्य को निरंतर करते
रहने से परपीड़ा का आभास होने लगता है । उनके द्वारा निकली भीतरी शुभकामनाएँ स्वयं
की भीतरी ऊर्जाओं को सकारात्मक दिशा की तरफ परिवर्तित करने लगतीं हैं । आपको तब
भीतर से कुछ बदलने की हलचल प्रतीत होती , बस समझिए भीतर ऊर्जाओं का खेल चल रहा है ।
योग साधना – योग साधना और प्राणायाम के द्वारा भीतर
की ऊर्जाओं का सकारात्मक परिवर्तन होगा । व्यावहारिकता आश्चर्यजनक रूप से बदलने
लगेगी । यदि उस समय भीतर इस परिवर्तन को समझने का प्रयास किया जाए तो ऊर्जाओं का
भीतरी खेल महसूस होने लगेगा ।
क्रियाएँ – कुछ विधियाँ हैं ऊर्जाओं को प्राप्त कर
सुरक्षित करने और जरूरत पड़ने पर स्वयं के लिए अथवा किसी अन्य जीव की पीड़ा पर उसे
प्रदान करने की । ऊर्जाओं की विधियों का उपयोग विशिष्ट साधना के स्तर पर प्राप्त
हो सकता है ।
ऊर्जाएँ जीवित के जीवन को सुख में रखने अथवा दुख को भोगने के लिए अत्यंत
महत्वपूर्ण भूमिका निभतीं हैं । जिस प्रकार हम सकारात्मक ऊर्जाओं को संरक्षित करने
और सही समय पर उसके उपयोग की बात करते हैं उसी प्रकार नकारात्मक ऊर्जाएँ भी
संरक्षित कर लोग किसी को दुखी करने के लिए प्रयोग में लातें हैं । किन्तु
नकारात्मक ऊर्जाओं को संरक्षित करना स्वयं की भी हानि करना है। यदि किसिने क्रोध,दुर्भाववश
किसीका कोई नुकसान करने का प्रयास किया जो
उसयोग्य नहीं है तो निश्चित ही वह ऊर्जा व्यक्ति का नुकसान करने के लिए पूरा कार्य
न करके अथवा कुछ अंश में बचकर नुकसान करने वाले का भी नुकसान करेगी एवं नुकसान
खाने वाले की पीड़ा अवश्य नुकसान करने वाले के भीतर नकारात्मक रूप में प्रकट होकर
नुकसान का ही कार्य करेगी ।
हमेशा भला विचार करें – भीतर सकारात्मक ऊर्जाओं
की वृद्धि स्वयं की समृद्धि के लिए पर्याप्त कार्य करती है । भीतर सकारात्मक
ऊर्जाओं की वृद्धि का सबसे मुख विकल्प यही है की हमारा विचार एवं कर्म पुरुषार्थी
एवं परमार्थी रहे । ____________________________आलेख मानस राजऋषि
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